गांव दूधली विकास के पथ पर अग्रसर, गांव में हुए लाखों रूपये के विकास के कार्य
नारायणगढ़ / 9 फरवरी / न्यू सुपर भारत
उपमण्डल का गांव दूधली विकास के पथ पर अग्रसर है। गांव के सभी वर्गो के लोग आपसी प्रेम एवं भाईचारे के साथ रहते है। इस गांव में लाखों रूपये के विकास के कार्य हुए है। गांव की निवर्तमान सरपंच सुनीता देवी ने बताया कि गांव में पिछले 5 सालों में कोई लड़ाई झगड़ा नहीं हुआ है। गांव के लोगों को मुख्य व्यवसाय खेती बाड़ी और पशुपालन है।
उन्होने बताया कि गांव में लगभग 40 लाख रूपये की राशि से गलियों एवं नालियों का निर्माण किया गया है। प्राचीन शिव मंदिर में लंगर हॉल के निर्माण पर लगभग 14 लाख रूपये की राशि खर्च की गई है। शमशान घाट का शैड एवं गली के निमार्ण पर लगभग 3 लाख 40 हजार रूपये की राशि खर्च हुई है। खेतों के दो गोहर/रास्तों को इंटों से पक्का करवाया गया है जिस पर 14 लाख रूपये की राशि खर्च हुई है। जिला परिषद की दो लाख रूपये की ग्रांट से कुंआ चौंक का सौन्दर्यकरण टाईलिंग आदि से किया गया है।
गांव दूधली की लगभग 400 की जनसंख्या है। गांव में एक आंगनवाड़ी केन्द्र, पेयजल आपूर्ति के लिए टयूबैल, पंचायत घर है। प्राचीन शिव मंदिर का अपना एक विशेष महत्व है। शिव रात्रि के अवसर पर आस-पास के ग्रामीणों के अलावा दूर दराज के क्षेत्रों से भी श्रद्धालुगण यहां पर पूजा अर्चना करने आते है।
गांव दूधली के प्रगतिशील किसान सुशील कुमार ने परम्परागत खेती जैसे धान को छोडक़र सब्जी की खेती को अपनाया है। किसान सुशील कुमार ने बताया कि वे लगभग 3 एकड़ में सब्जी की पैदावार करते है। उन्होंने कहा कि वे अपने लिए ही गेहूं की खेती करते है और आलू की खेती के अलावा प्याज, भिंडी, गोबी आदि सब्जीयों की पैदावार करते है।
किसान सुशील कुमार ने बताया कि वे खेती के साथ-साथ पशुपालन का काम भी करते है जिससे उन्हें अच्छी आमदनी हो जाती है। उन्होंने कहा कि खेती के साथ-साथ पशुपालन का व्यवसाय किसानों के लिए फायदेमंद है।
बता दें कि नारायणगढ़ से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह गांव शिवालिक की पहाडिय़ों की तलहटी में बसा हुआ है और आसपास के क्षेत्र में यह गांव धार्मिक रूप से एक विशेष पहचान रखता है। गांव दूधली के प्राचीन शिव मंदिर का अपना एक विशेष महत्व है।
ग्रामीणों के अनुसार पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक पांडवों ने अपना अज्ञातवास इस क्षेत्र के सिंध वन में गुजारा था। आरंभ में इस स्थान पर एक शिव पिंडी हुआ करती थी। यह भी मान्यता है कि गांव के एक युवक को पशु चराते हुए भगवान के दर्शन हुए और उन्होंने अपना परिवार छोडकऱ पिंडी के पास एक गुफा खोदकर समाधि लगा तपस्या की।
बाद में उनका नाम छज्जू नाथ पड़ा। बाबा छज्जू नाथ के समाधि लेने के बाद बाबा संतनाथ गद्दी पर विराजमान हुए। उनके बाद बाबा ध्याननाथ गद्दीनशीन हुए। वर्तमान में बाबा भोलानाथ मंदिर की व्यवस्था का कार्य देख रहे हैं। निवर्तमान सरपंच सुनीता देवी ने बताया कि इस मंदिर में प्रतिवर्ष शिव रात्रि पर एक बड़ा मेला लगता है।