श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिवस में परम श्रद्धेय स्वामी अतुल कृष्ण जी महाराज ने ठाकुरद्वारा में कहा स्वर्ग और नर्क जीने के दो -सजयंग हैं।

बढ़ेरा, हरोली, ऊना, 07 फ़रवरी 2021/ न्यू सुपर भारत
स्वर्ग और नर्क जीने के दो -सजयंग हैं। कोई चाहे यहीं संसार में
स्वर्ग निर्मित कर ले, कोई चाहे यहीं नर्क में रहे। कोई चाहे सुबह स्वर्ग
में रहे, सां-हजय नर्क में रहे। कोई चाहे क्षण भर पहले स्वर्ग और क्षण भर
बाद नर्क। हमारे जीवन में ऐसा ही रोज हो रहा है। मनुश्य जन्म एक अवसर है कुछ
सृजन करने करने का। यहां न कुछ सत्य है और न ही असत्य। मानव की महिमा यही है
कि जीवन वही हो जाएगा जैसा हम करना चाहते हैं।
उक्त ज्ञानमय कथासूत्र श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिवस में परम श्रद्धेय
स्वामी अतुल कृश्ण जी महाराज ने ठाकुरद्वारा, ब-सजयेड़ा में व्यक्त किए। उन्होंने
कहा कि जब हम संसार की ओर दौड़ते हैं तो परिणाम असत्य के रूप में हाथ में
आता है। पर इसके विपरीत जब हम प्रभु की ओर कदम ब-सजय़ाते हैं तो मृत्यु भी
आरती उतारती है क्योंकि जीवन को सत्य कर लिया। वर्णमाला के जिन अक्षरों से
गालियां निर्मित होती हैं उन्हीं अक्षरों से श्रीमद् भगवद्गीता का भी जन्म
होता है। बस अक्षरों के संयोजन की बात है। वे ही षब्द गंदे हो जाते हैं,
वे ही पुण्य एवं प्रसंषा की सुगंध भी ले आते हैं। यह हम पर निर्भर है, अपने
भविश्य के हमीं निर्माता हैं।

अतुल कृश्ण जी ने कहा कि संसार में अब और अवतार, षास्त्र, धर्म एवं पंथ
की अवष्यकता नहीं है। जितने अभी तक उपलब्ध हैं हम उन्हीं से निहाल हो सकते
हैं। श्रीमद् भागवत कथा हमें सारे दोशों से मुक्त कर मानवीय जीवन
मूल्यों की फिर से स्थापना करती है। सत्य, प्रेम, दया, करुणा, श्रद्धा एवं आस्था के
वृक्ष सदैव ही फलते-ंउचयफूलते देखे गए हैं। जबकि हींसा, वैमनस्य, घृणा, कपट,
अज्ञान एवं नास्तिकता का सर्वनाष निष्चित है। आज कथा में श्रीवामन अवतार,
मत्स्यावतार, भगवान श्रीराम की कथा एवं भगवान श्रीकृश्ण के जन्म का प्रसंग सभी
ने मंत्रमुग्ध होकर सुना। इस भागवत कथा से सारे क्षेत्र का वातावरण साक्षात
वृन्दावन ही हो गया है।