Site icon NewSuperBharat

धर्म का संबंध मृत्यु के पार से नहीं अपितु जीवन के निखार एवं आनंद से है : स्वामी अतुल कृष्ण महाराज

ऊना / 06 फरवरी / राजन चब्बा


धर्म का संबंध वर्तमान से है। हम भूलवष इसे परलोक से जोड़ कर देखते हैं। धर्म का संबंध मृत्यु के पार से नहीं अपितु जीवन के निखार एवं आनंद से है। हम पाप एवं पुण्य से जोड़ कर धर्म को न देखें। धर्म से वर्तमान जीवन उत्सव में बदल जाता है। धर्म का फल है उत्कर्श, प्रसन्नता, यष, षाष्वत सुख एवं परम तत्व का अनुभव। जो धर्म का पालन करते हैं वे विराट को वामन बना लेते हैं।


उक्त ज्ञानमय कथासूत्र श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस में परम श्रद्धेय स्वामी अतुल कृश्ण जी महाराज ने ठाकुरद्वारा, बढेड़ा में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि धर्मात्मा राजा बलि के आगे भगवान विश्णु वामन बन गए, यह धर्म का ही बल था। ईष्वर से प्रेम समग्र क्रांति है। परमात्मा की भक्ति जीवन के रूपांतरण एवं बदलाव की दिषा में रखा गया सही कदम है। जैसे प्रकाष में हर वस्तु बिलकुल साफ दिखाई देती है। कहां दीवार है और कहां दरवाजा, कहां फूल हैं और कहां कांटे सब कुछ स्पश्ट दिखता है। ऐसे ही षाष्वत ब्रह्म का सानिध्य हमारे आसपास के कण-कण को प्रकाषित कर अज्ञान को सदा के लिए मिटा देता है। श्रीमद् भागवत कथा परम सत्य का बोध कराती है। हम लीपापोती को ही धर्म समझ बैठे हैं।

अतुल कृश्ण जी ने कहा कि जो भगवान के हो गए उनका योगक्षेम प्रभु स्वयं वहन करने लगते हैं। मनुश्य जन्म पर परमात्मा की अनंत कृपा है। मनुश्य होकर भारतवर्श में जन्म लेना वह भी देवभूमि हिमाचल में निवास करना, यह पूर्व जन्म के सुकृतों का ही परिणाम है। इस पर भी भगवान की कृपा-करुणा कितनी अधिक है कि हम सब को ऋशि-मुनि दुर्लभ श्रीमद् भागवत जी की कथा निरंतर प्राप्त होती रहती है।

आज कथा में श्रीभरत चरित्र, अजामिल के उद्धार का प्रसंग, भगवान नृसिंह एवं श्रीवामन अवतार की लीला सभी ने तन्मय होकर सुनी। ठाकुरद्वारा बढेरा में कथा प्रतिदिन 11 से 2 बजे है जो 10 फरवरी तक जारी रहेगी। सारी संगत के लिए आयोजकांे ने प्रतिदिन ही खान-पान एवं लंगर भंडारे का उत्तम प्रबंध कर रखा है।

Exit mobile version