परमात्मा का भजन ही इस मनुष्य जन्म का सार है :अतुल कृष्ण जी महाराज


खीण माजरा ( रोपड़ )/ 26 नवंबर / न्यू सुपर भारत न्यूज़
हम जय तो भगवान की बोलते हैं पर प्रसन्नता स्वयं को मिलती है। हजारों जन्मों में जो काम हम नहीं पूरा कर सके उसे इस जन्म में अवश्य पूर्ण कर लेना चाहिए। परमात्मा का भजन ही इस मनुष्य जन्म का सार है। भगवान की कथा अपने प्रियतम का मधुर संदेष है। यह संसार के समस्त प्राणियों केलिए परमेष्वर का बुलावा है। हम प्रभु प्रेम में डूबकर ही मानव जीवन को आनंदित करसकते हैं। जिसका मन शांत एवं ईष्वर से अनुरक्त है वह खुली आंख से भी प्रसन्न रहता है जबकि मन अशांत होने पर आंखें बंद कर के भी बैठो तो भी कुछ नहीं होता।
उक्त अमृतवचन श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस में परम श्रद्धेय अतुल कृष्ण जी महाराज ने श्री रमताराम आश्रम, खीण माजरा में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि मनुष्य होकर जिसने परमात्मा का भजन नहीं किया उसका दुखों से पिंड नहीं छूट सकता। संसार का ज्ञान हो जाने पर संसार तुच्छ लगने लगता है। ईश्वर का अनुभव होने पर चिंता, दुख एवं परेशानियाँ छूमंतर हो जाती हैं। भौतिक आकर्षण ही हमें लक्ष्य से दूर कर देते हैं। जीवन की मुश्किलें लौकिक साधनों से मिटती नहीं। इन साधनों से मात्र दुख दब जाते हैं,उनका स्वरूप बदल जाता है अथवा उनकी विस्मृति हो जाती है।

स्वामी अतुल कृश्ण जी महाराज ने कहा कि प्रभु केभजन बिना न जाने कितने लोगों के जन्म बिगड़ गए। यही नादान लोगों की नासमझीहै कि वे संसार के सारे कर्म तो करते हैं पर भगवान का भजन नहीं करते। प्रभु के नाम का सतत जप करें। तप करने से बुद्धि के सारे दोष मिट जाते हैं। तत्वज्ञान के बिना जन्म-जन्मांतर की थकान नहीं मिटती। मन एवं बुद्धि से परे अक्षर पुरुषोतम श्री हरिका आश्रय लें इसी में हमारा मंगल है। सार-असार के विवेक बिना जीवन मुक्ति का अनुभव नहीं हो सकता। विमल विवेक के अभाव के कारण ही अभी तक हम सच्चे सुखदातासे दूर बने हुए हैं। आज कथा में श्रीध्रुव जी तपस्या, राजर्शि भरत का चरित्र, अजामिलउद्धार, श्रीनृसिंह भगवान का अवतार एवं श्रीवामन भगवान की लीला का प्रसंग सभी ने तन्मय होकर सुना।