महाराजा जस्सा सिंह अहलुवालिया की 3 मई को 304 वीं जयंति पर विशेष।

नारायणगढ / 2 मई / न्यू सुपर भारत
सरदार जस्सा सिंह अहलुवालिया भारत के उन महान सपूतों में से एक थे। जिन्होंने विदेशी आक्रांताओं एवं विधर्मियों से भारत की पावन भूमि तथा संस्कृति की रक्षा की थी। सिखों की आहलुवालिया मिसल के संस्थापक वे ही थे। अहलुवालिया सभा नारायणगढ के प्रधान मुकेश वालिया का कहना हैं कि सरदार जस्सा सिंह जी न केवल आहलुवालिया समाज के आदी पुरूष हैं अपितु वे हमारे समूचे समाज के मध्यकालीन इतिहास के अग्रणी आदर्श पुरूषों में से हैं।
उनका जन्म 3 मई, 1718 को लाहौर के समीप स्थित आहलु गांव के निवासी सरदार बदर सिंह कलाल के घर हुआ था। वह गांव अब पाकिस्तान में हैं। उसी गांव के नाम पर वे आहलुवालिया कहलाये। जब वे मात्र पांच वर्ष के थे तब उनके सिर से पिता की छाया उठ गई। उनकी माता जीवन कौर ने उन्हें अपने भाई बाघ सिंह के सहयोग से गुरू गोविन्द सिंह जी महाराज की धर्मपत्नि माता सुन्दरी जी का आर्शीवाद दिलवाने दिल्ली ले गई।
माता सुन्दरी जी को बालक जस्सा सिंह इतने प्रिय लगे कि उन्होंने उन्हें अपने पुत्र की तरह स्नेह दिया तथा अपने पास रख लिया। वहां रह कर जस्सा सिंह ने विद्याजर्न के साथ-साथ हथियार चलाना भी सीखा। जब वे 18 वर्ष के थे, तब उनके मामा सरदार बाघ सिंह उन्हें अपने साथ पंजाब ले गए। पंजाब जाने से पूर्व माता सुन्दरी जी ने उन्हें वस्त्र, ढाल, तलवार, धनुष तथा बाणों से भरा तरकश प्रदान कर आर्शीवाद दिया।
सरदार बाघ सिंह ने जस्सा सिंह को अपना दत्तक पुत्र बना लिया। वह दौर उत्तर भारत के लिए विशेष संकट का दौर था।
एक तरफ मुगल शासक हिन्दू प्रजा, विशेषत सिखों पर अत्याचार ढा रहे थे। विदेशी आक्रान्ता बार-बार आकर लूटमार कर रहे थे। सिख वीर जिन सेनानायकों के नेतृत्व में देश और धर्म की रक्षा कर रहे थे। उनके सर्वोच्च सेनापति नवाब कपूर सिंह फैजलपुरियां थे। जस्सा सिंह केे मामा जी व माता जी ने उन्हें नवाब कपूर सिंह की सेवा में छोड़ दिया। नवाब कपूर सिंह ने जस्सा सिंह को अमृत छका कर दीक्षा दी।
नवाब कपूर सिंह के नेतृत्व में सिखों ने अनेक युद्ध लड़े जिनमें सरदार जस्सा सिंह जी ने निंरतर वीरता का प्रदर्शन किया। सन् 1747 में अमृतसर पर सलावत खां का शासन था। उसने सिखों के दरबार साहिब में जाने और पवित्र सरोवर में स्नान करने पर पाबंदी लगाई हुई थी। सरदार जस्सा सिंह ने सलावत खां को और सरदार कपूर सिंह ने सलावत खां के भतीजे बजाबत खां को मार गिराया । सिखों ने 1748 को अपने पवित्र तीर्थ अमृतसर में बैशाखी का पावन पर्व भी मनाया।
उस अवसर पर नवाब कपूर सिंह ने सिख संगत से अनुरोध किया कि उन्हें दल खालसा अर्थात सिखों के सर्वोच्च संगठन के सर्वोच्च सेनापति के पद से मुक्त करके सरदार जस्सा सिंह आहलुवालिया को दल खालसा का सर्वोच्च सेनापति बना दिया जाए। तदनुसार सरदार जस्सा सिंह को आहलुवालिया दल खालसा के सर्वोच्च सेनापति बनाए गए। नवाब कपूर सिंह सिखों की सभी 12 मिसलों के सर्वोच्च नेता था। सन् 1753 में उनका देहान्त होने पर सरदार जस्सा सिंह जी आहलुवालिया को सिख मिसलों के सर्वोच्च सेनापति के साथ-साथ सर्वोच्च नेता भी घोषित किया गया।
सरदार जस्सा सिंह ने अहमद शाह अब्दाली के चंगुल से बन्दी हिन्दु महिलाओं व बच्चों को मुक्त कराने पर इन्हें बन्दी छोड़ मुक्ति दिलवाने वाला भी कहा गया। पंजाब को आक्रांता आततातियों के चुंगल से मुक्त कराया जिसके लिए वे सिखों में सुल्तान-उल-कौम(पंथ के सम्राट) कहलाये। बाद के कई युद्धों में भी उन्होंने अपनी वीरता के जौहर दिखाकर कौम और देश की रक्षा की।
18 वीं शताब्दी के महान योद्धा सुल्तान उल कौम महाराजा जस्सा सिंह आहलुवालिया की 304 वीं जयंती 3 मई दिन मंगलवार को आहलुवालिया धर्मशाला नारायणगढ़ में धूमधाम से मनाई जाएगी। जानकारी देते हुए आहलुवालिया सभा के प्रधान मुकेश वालिया ने बताया कि महाराजा जस्सा सिंह आहलुवालिया की जयन्ती समारोह पर आयोजित होने वाले समारोह के मुख्यतिथि हरियाणा के शिक्षा मंत्री कंवर पाल होगें तथा कार्यक्रम के अतिविशिष्ठ अतिथि सांसद रतन लाल कटारिया व सांसद नायब सिंह सैनी होगें।
उन्होंने कहा कि नारायणगढ़ की समस्त आहलुवालिया बिरादरी के सहयोग से आयोजित किये जा रहे इस समारोह में विशिष्ठ अतिथि के तौर पर भारत सरकार के जीव जन्तु कल्याण बोर्ड के सदस्य मोहन सिंह आहलुवालिया तथा भाजपा प्रदेश प्रवक्ता विजय पाल सिंह आहलुवालिया, हरियाणा के वित आयोग के पूर्व सदस्य राजेन्द्र मोहन वालिया (रोशा) व उद्योगपति प्रमोद वालिया शिरकत करेगें। उन्होंने बताया कि 3 मई को प्रात: 8.15 बजे श्री सुखमणी साहब पाठ होगा तथा मुख्यतिथि का आगमन प्रात: 11 बजे होगा। प्रितिभोज दोपहर 1.30 बजे होगा।